मौन अधर16-14
मौन अधर16/14
मौन अधर के बोल अनकहे,
चंचल नैन सुनाते हैं।
रहे छुपा जो हृदय-कोष में,
उसकी बात बताते हैं।।
सतही सुख की प्राप्ति हेतु तो,
नहीं मनुज-मन हिचकत है।
कभी दुखों से व्यथित रहे यह,
कभी मगन हो थिरकत है।
जब भी भरे उड़ान मनुज-मन,
नैन झूम कर गाते हैं।।
रहे छुपा जो हृदय-कोष मे,
उसकी बात बताते हैं।।
प्रेम-घृणा के द्वार नैन हैं,
आशा और निराशा के।
लिखें लेख ये मन-उमंग के,
बोझिल भाव हताशा के।
अंतर्मन के भोग-रोग के,
सारे भाव जताते हैं।।
रहे छुपा जो हृदय-कोष में,
उसकी बात बताते हैं।।
दो से होते चार नैन जब,
होती सिहरन सी तन में।
धरती झूमे,अंबर झूमे,
लगे सतत ऐसा मन में।
तन-मन की सारी चंचलता,
संग नैन इठलाते हैं।।
रहे छुपा जो हृदय-कोष में,
उसकी बात बताते हैं।।
मधुर मिलन की राह रोकती,
यह पागल दुनिया सारी।
पदे-पदे भी करे परीक्षण,
फैला पथ रोड़े भारी।
प्रेम-भाव को छुपा नैन नित,
फिर भी तो मुस्काते हैं।।
रहे छुपा जो हृदय-कोष में,
उसकी बात बताते हैं।।
Rajeev kumar jha
02-Apr-2023 11:49 AM
वाह
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सीताराम साहू 'निर्मल'
01-Apr-2023 02:59 PM
बेहतरीन
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ऋषभ दिव्येन्द्र
31-Mar-2023 12:52 PM
बहुत सुन्दर 👏👏👌👌
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